हमने अपने वसंत को चूमा
और खो गये
कुछ पत्तियां थी निष्पाप
टंगी रह गयी
कुछ पतंगे
उड़ते और मर जाते थे
एक कांच का आइना
टूट गया
वह सड़क पर बेतहाशा
दौड़ती रही
सबकुछ इतना स्वाभाविक था
कि हवा चली और दुप्पटा लहरा गया
शहर से दूर
एक जोर की लहर उठी
सीटी बजाती बस दूर चली गयी
बस की खिड़की से कोई रुमाल लहराता रहा
स्मृतियाँ धूल बनकर उड़ने लगी हर ओर
उस बरस वसंत
ने पागल कर दिया था
फिर जीवन में आते रहे
शीत और ग्रीष्म अविराम।
और खो गये
कुछ पत्तियां थी निष्पाप
टंगी रह गयी
कुछ पतंगे
उड़ते और मर जाते थे
एक कांच का आइना
टूट गया
वह सड़क पर बेतहाशा
दौड़ती रही
सबकुछ इतना स्वाभाविक था
कि हवा चली और दुप्पटा लहरा गया
शहर से दूर
एक जोर की लहर उठी
सीटी बजाती बस दूर चली गयी
बस की खिड़की से कोई रुमाल लहराता रहा
स्मृतियाँ धूल बनकर उड़ने लगी हर ओर
उस बरस वसंत
ने पागल कर दिया था
फिर जीवन में आते रहे
शीत और ग्रीष्म अविराम।