1945 में नोबेल से सम्मानित चीले की इस्पाहानी कवयित्री गाब्रियला मिस्त्राल की कविताओं से गुजरना एक आत्मीय अनुभव रहा। अनुपस्थिति का देश तथा अन्य कविताएं नामक इस संकलन की कविताओं का अनुवाद गंगाप्रसाद विमल,विनोद शर्मा और आलोक लाहड ने किया है। प्रस्तुत है उनकी एक कविता ...
गिन गिन कर ले जाने वाली सनातन मृत्यु
यह दक्ष हाथों वाली मृत्यु
जब निकले राह पर
न मिले मेरे बच्चे को
सूंधती है नवजातों को
और लेती है गंध उनके दूध की
पाये वह नमक और आटे का ढेर
न मिले उसे मेरा दूध
वह दुनिया की पूतना
जीवित लोगों को समुद्र तटों
खौफनाक रास्तों पर विमोहित करने वाली
इस अबोध को न मिले
नामकरण के साथ
विकसता है वह फूल सा
भूल जाए उसे अचूक याद वाली मौत
खो दे अपनी गणना।
कर दें उसे पागल
नमक,रेत और हवाएं
और दिग्भ्रमित भटके
वह पगली मौत।
कर दें उसे भ्रमित माएं और बच्चे
मछलियों की मानिन्द
और जब मेरा वक्त आए
वह मुझे निपट अकेली खाए।
गिन गिन कर ले जाने वाली सनातन मृत्यु
यह दक्ष हाथों वाली मृत्यु
जब निकले राह पर
न मिले मेरे बच्चे को
सूंधती है नवजातों को
और लेती है गंध उनके दूध की
पाये वह नमक और आटे का ढेर
न मिले उसे मेरा दूध
वह दुनिया की पूतना
जीवित लोगों को समुद्र तटों
खौफनाक रास्तों पर विमोहित करने वाली
इस अबोध को न मिले
नामकरण के साथ
विकसता है वह फूल सा
भूल जाए उसे अचूक याद वाली मौत
खो दे अपनी गणना।
कर दें उसे पागल
नमक,रेत और हवाएं
और दिग्भ्रमित भटके
वह पगली मौत।
कर दें उसे भ्रमित माएं और बच्चे
मछलियों की मानिन्द
और जब मेरा वक्त आए
वह मुझे निपट अकेली खाए।
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