नरो वै देवानां ग्राम: - ताण्डय ब्राह्मण
मनुष्य में सभी देवताअेां का निवास है।
अन्नं हि भूतानां ज्येष्ठम्। तस्मात्सर्वोषधमुच्यते जातान्यन्नेन वर्धन्ते। अद्यतति च भूतानि॥
-तैत्तिरीय
प्राणियों में अन्न की ही श्रेष्ठता है। इसलिए
उसे सर्वोत्तम औषधि कहते हैं। अन्न से जीव जन्मते और बढ़ते हैं। जीवधारी
अन्न को खाते हैं, पर वह अन्न जीवों को भी खा जाता है।
अन्नमयं हि सोम्य मन। (छान्दोग्य)
हे सोम्य! यह मन अन्नमय है।
अन्नमशितं प्रेधा विधीयते तस्य यः स्थविष्टो धातुस्तपुरोषं भवति यो मध्य मस्तन्मा स योगिष्टास्तन्मव। (छान्दोग्य)
जो अन्न खाया जाता है, वह तीनों भागों में विभक्त हो जाता है। स्थूल अंश मल, मध्यम अंश रस-रक्तमाँस तथा सूक्ष्म अंश मन बन जाता है।
तासां महाभाग्यादे कैकस्या अपि बहूनि नामधेयानि भवन्ति। अपि वा कर्मपृथक्त्वात। निरूक्त, यास्क। देवता एक ही हैं, किन्तु उनके नाम अनेक हैं क्यों कि उनके कर्म अलग-अलग हैं।
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